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December 20, 2025 4:30 PM

Parikrama

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THE HEADLINES:

 

  • प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज पश्चिम बंगाल में करीब तीन हजार दो सौ करोड़ रुपये की राष्‍ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं का शुभारंभ किया।

 

  • Prime Minister to also inaugurate various development projects in Assam this evening.

 

  • प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ शिकायत पर संज्ञान लेने से इनकार करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दिल्ली उच्‍च न्‍यायालय मे अपील की।

 

  • Seven elephants killed after Sairang-New Delhi Rajdhani Express hit a herd of jumbos in Hojai district of Assam.

 

  • पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को तोशाखाना दो भ्रष्टाचार मामले में 17-17 साल जेल की सजा सुनाई।

 

  • Ladakh celebrates its new year festival Losar.

 

  • बी डब्‍ल्‍यू एफ वर्ल्ड टूर बैडमिंटन फाइनल्स में सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी आज शाम हांगझोऊ में सेमीफाइनल में चीन के लियांग वेई केंग और वांग चांग के साथ खेलेंगे।

 

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Now, it’s time for our segment Dateline India, in which we take a look at the developments taking place at the national or global level. Today, we will talk about: Waste management innovations in Himalayan and North Eastern States.

 

You know that moment when you’re walking down your street and you see a pile of garbage growing bigger every day – and you wonder, “Why isn’t this just… disappearing?” That question isn’t small. It’s real. It’s close to our lives.

 

और अगर आपने कभी सोचा है कि अपशिष्ट प्रदूषण की समस्या का समाधान करना केवल “बड़े शहरों” या सरकारों का काम है, तो आज की यह यात्रा आपकी इस सोच को पूरी तरह से बदल सकती है।

 

Let’s take a stroll through Northeast India – not on a map, but through local stories that make you stop and say, “Wait, they really did that?”

 

असम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नागालैंड की पहाड़ियों और घाटियों में समुदाय कचरे का सम्मान, जिम्मेदारी और रचनात्मकता के साथ निपटान कर रहे हैं।

 

They’re rewriting the story of cleanliness in ways that are practical, livelihood-supporting, and beautiful.

 

Think of an old dumpsite you’ve seen – foul smell, flies, plastic everywhere right? Now what if I told you that a similar site in North Lakhimpur in Assam was transformed into a space that could soon become a lush urban forest and retreat zone?

 

उन्होंने 79,000 टन कचरा साफ किया – यह सैकड़ों स्कूल बसों के वजन के बराबर कचरा हटाने और प्रकृति और वन्यजीवों के लिए ज़मीन को फिर से खोलने के बराबर है। पक्षी लौट आए, मछलियाँ सुमदिरी नदी में वापस तैरने लगीं और लोग चलने-फिरने और सांस लेने में अधिक सहज हो गए।

 

You know, sanitation usually sounds like a routine civic duty. Bins, trucks, schedules. But what happens when cleanliness stops being someone else’s job and starts feeling personal?

 

मिजोरम के आइजोल में ठीक यही बदलाव देखने को मिल रहा है। शहर ने एक बहुत ही सरल विचार और योजना – ‘एक कूड़ेदान गोद लें’ योजना – के साथ अपने स्वच्छता अभियान को और भी प्रभावी बनाया है।

 

No heavy jargon, no complex systems. Public dustbins are placed across the city, and the people who live and work around them step forward to say, “This one’s on us.”

 

निवासियों, दुकानदारों, स्कूलों, गैर सरकारी संगठनों, युवा समूहों, सामुदायिक संगठनों – सभी को अपने द्वारा गोद लिए गए कूड़ेदानों और आसपास के क्षेत्र को साफ रखने की जिम्मेदारी लेनी होगी, जब तक कि नगरपालिका की टीमें कचरा इकट्ठा करने नहीं आ जातीं।

 

Ninety-five dustbins adopted across seventy-five locations. Many adopters put up clear signboards reminding passers-by to use it properly.

 

अन्य लोगों ने इसके आसपास के क्षेत्र को सुशोभित किया। स्वच्छता को साझा स्वामित्व में स्थापित करके, आइजोल ने चुपचाप नियमित अपशिष्ट प्रबंधन को एक जन-संचालित आंदोलन में बदल दिया है।

 

No loud slogans. No enforcement-heavy approach. The change is visible because it’s personal. And that’s the real takeaway here.

 

ऐज़ॉल का अनुभव हमें बताता है कि नागरिक शक्ति केवल नीतियों और तंत्रों के माध्यम से ही नहीं बनती। कभी-कभी, यह तब बनती है जब आम लोग यह तय करते हैं कि जिस सड़क पर वे हर दिन चलते हैं, उसकी देखभाल ज़रूरी है और वे मिलकर इस दिशा में काम करते हैं।

 

If one adopted dustbin can change how a street feels, what could a city full of shared responsibility achieve?

 

अरुणाचल प्रदेश के रोइंग में कचरे की समस्या थी। उन्होंने क्या किया? उन्होंने मिलकर काम किया – ग्राम परिषदों, स्वयं सहायता समूहों और स्थानीय उद्यमियों ने एक आत्मनिर्भर कचरा प्रबंधन प्रणाली बनाई।.

 

People collected plastic waste, learned to segregate it, and sold recyclables. The money earned? Shared with the locals who made it happen.

 

यहाँ एक तितली पार्क है, जो लगभग पूरी तरह से पुनर्चक्रित सामग्रियों से बना है। अब चलिए अपने श्रोताओं को त्रिपुरा की कहानियों से रूबरू कराते हैं। त्रिपुरा ने न केवल फेंके गए कचरे को साफ किया, बल्कि उसे रोका भी। उन्होंने नालियों के ऊपर जालीदार अवरोध लगाए ताकि कचरा नदियों और झीलों में न जा सके।

 

Trucks, volunteers, and daily citizens worked together door-to-door teaching people why it matters not to throw plastics into drains.

 

हम कितनी बार यह भूल जाते हैं कि हम सड़कों पर जो कचरा फेंकते हैं वह यूं ही गायब नहीं हो जाता – यह जलमार्गों में, उन पारिस्थितिक तंत्रों में बह जाता है जिन पर हम निर्भर हैं?

 

This year in Nagaland, the Hornbill Festival became a zero-waste, zero-plastic celebration. No single-use plastic. Instead – locally sourced banana leaf plates, bamboo straws, composting on site, refill water stations.

 

शौचालयों को भी स्वच्छता और टिकाऊपन को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया था। क्या होगा अगर आप जिस भी त्योहार में भाग लें, वहां कचरे को छिपाने की बजाय एक मेहमान की तरह स्वागत किया जाए?

 

Across Northeast India waste management isn’t an abstract policy or a distant municipal task – it’s a lived, shared habit that builds pride, community strength, and local prosperity.

 

यह दर्शाता है कि चाहे हम बड़े शहरों में रहें या छोटे कस्बों में, हममें से प्रत्येक व्यक्ति ऐसे समाधानों का हिस्सा बन सकता है जिनका प्रभाव दूरगामी प्रभावों के रूप में दिखाई देता है।

 

That’s not just recycling – that’s rewriting the way how we care for our our own beloved world.

 

अब आइए पूर्वोत्तर भारत से अपना ध्यान हटाकर हिमालयी राज्यों की ओर मोड़ें। हम सभी पहाड़ों पर ट्रेकिंग करने गए हैं, और हम सभी ने देखा है कि जहां बर्फ होनी चाहिए वहां प्लास्टिक की बोतल पड़ी होती है?

 

What happens when we care for landscapes that nature itself carved with time and patience?

 

हिमालयी राज्यों – उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख – में स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन एक नया अर्थ ले रहे हैं।

 

Not as dry policies, but as everyday actions that make life cleaner, smarter, and even rewarding.

 

अगर आप प्लास्टिक का सही तरीके से निपटान करने पर हर बार एक छोटा सा इनाम कमा सकें तो कैसा रहेगा? भारत के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक केदारनाथ में, अधिकारियों ने डिजिटल भागीदारों के साथ मिलकर एक डिजिटल डिपॉजिट रिफंड सिस्टम शुरू किया है।

 

Every plastic bottle or multi-layered plastic item carries a unique QR code. You bring it back at a collection point- or one of the reverse vending machines- and get your deposit refunded digitally. How’s that for turning waste into a little win?

 

इससे न केवल तीर्थयात्रा के चरम मौसम के दौरान कूड़ा-कचरा कम होता है, बल्कि यह प्लास्टिक को नाजुक पहाड़ी इलाकों से दूर ले जाकर पुनर्चक्रण प्रणालियों में पहुंचाता है, जहां उसे होना चाहिए।

 

Think about your school or workplace for a second. How often do you see separate bins for wet and dry waste? That could be just a starting point of a bigger culture shift. Isn’t it?

 

जम्मू और कश्मीर भर में, सैकड़ों परिसरों – स्कूलों, कार्यालयों, सार्वजनिक स्थानों – ने कचरे के प्रबंधन के लिए एक कार्यक्रम में भाग लिया, जिसका उद्देश्य कचरे का प्रबंधन वहीं करना है जहां वह उत्पन्न होता है।

 

Let’s shift the lens now to the high altitude of Leh- where power and logistics aren’t simple. How do you run a solid waste system in a cold desert? The answer: solar energy. लेह की अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधा सूर्य की रोशनी से चलती है और इसे प्रतिदिन 30 टन तक कचरे को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया है। Recovered waste isn’t dumped- it’s repurposed into products such as compost and pavement tiles for local use.

 

जब आप नवीकरणीय ऊर्जा और स्मार्ट डिज़ाइन को प्राथमिकता देते हैं, तो दूरदराज के इलाकों में भी ज़बरदस्त नतीजे मिलते हैं। अब ज़रा उन ढलान वाली गलियों की कल्पना कीजिए जहाँ पारंपरिक कचरा ट्रक नहीं जा सकते। ऐसे में कौन आगे आता है? उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले के एक कस्बे में, स्थानीय स्वयं सहायता समूह की कुछ महिलाओं ने घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करने का काम अपने हाथ में लिया।

 

They navigated narrow, steep pathways that machines can’t reach, and they did it with purpose- talking to households about segregating waste as they went. These aren’t just sanitation workers – they’re changemakers shaping how people think about waste and dignity.

 

हिमालयी और उत्तर पूर्वी क्षेत्र में, अपशिष्ट प्रबंधन एक ऐसी समस्या नहीं है जिससे लड़ना है – यह नवाचार, सहयोग और रोजमर्रा की जिम्मेदारी के लिए एक अवसर है।

 

From digital refunds to solar power, from campuses to community groups, solutions reflect the conditions and people of each place, not generic templates. What habit, big or small, could you start this week that might seem simple but actually reshapes how we live with waste?

 

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क्षेत्रीय संवाददाता

 

बिहार

 

डिजिटल इंडिया की गूंज देश के शहरों के साथ ही ग्रामीण इलाकों में सुनाई देने लगी है। ऐसा ही एक उदाहरण देखने को मिला है बिहार के बेगूसराय जिले के एक सरकारी विद्यालय में। यह स्कूल अपनी वेबसाइट बनाने वाला बिहार का पहला सरकारी स्कूल बन गया है। और ब्यौरा हमारी संवाददाता से।

 

केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया का मंत्र बिहार के शहरों के साथ ही गांवों में भी गूंजने लगा है। बेगूसराय जिले की सूजा पंचायत के उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, भर्रा ने प्रदेश के सरकारी विद्यालयों के बीच एक मिसाल कायम की है। यह स्कूल अपनी वेबसाइट बनाकर विद्यार्थियों को शिक्षित करने वाला राज्य का पहला विद्यालय बन गया है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक पंकज यादव कहते हैं कि इस वेबसाइट पर स्कूल की सभी गतिविधियों की जानकारी आम लोगों के लिए उपलब्ध है।

 

इधर, स्कूल के विद्यार्थियों में इसे लेकर खासा उत्साह और हर्ष का माहौल है। उनका कहना है कि स्कूल नहीं जाने की स्थिति में वेबसाइट पर ई-बुक की मदद से संबंधित विषय की पढाई कर सकते हैं। 

 

आज के इस इंटरनेट युग में जहां बच्चे डिजिटली फॉरवर्ड हो रहे है ऐसे में इस सुविधा को उनके लिये उपयोगी बनाने में स्कूल की तरफ से इस तरह की पहल काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं। परिक्रमा के लिये पटना से मैं डॉ. सविता पारीक.

 

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Ladakh-Losar Festival

 

Ladakh is celebrating the Losar Festival today to mark the Ladakhi New Year. Our Leh Correspondent has filed a report on this.

 

Losar is the main social, religious and Cultural festival of Ladakh celebrated across Ladakh with traditions and rituals.  God and Godess are invoked for prosperity, good crops and wealth in the new year. The Losar Celebration starts with lighting of prayer lamps, illuminating of religious monuments places like monasteries, stupas, residential houses and almost every inhabited building on the eve of Losar yesterday night and followed by exchange of Losar Greeting on the first day of New Year today. The Losar festivities continue for nine more days from the first day of the new year with offerings of prayers in the name of God and Goddess, performed dances and songs in honour of Ibex and pilgrimage of Mount Kailash. New year is welcomed with dough Models of Ibex, Sun and Moon and flour painted lucky signs on the walls of the kitchen. The third day of New Year is celebrated with sightings of the first moon of the year with prayer for bumper crops in the coming year. Yangchan Dolma from Ladakh.

 

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हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा मादक पदार्थों खासतौर पर चिट्टे के सेवन की गंभीर समस्या से निपटने और युवाओं को नशे से दूर रखने के लिए अनेक निर्णायक कदम उठाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में सरकार ने मादक पदार्थों के विरुद्ध बहुआयामी, सख्त और परिणामपरक मुहिम ’चिट्टा मुक्त हिमाचल’ अभियान की शुरुआत की है, जिसमें समाज के हर वर्ग की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।

 

हिमाचल प्रदेश में युवाओं में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति पर पूरी तरह लगाम लगाने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। इसी के दृष्टिगत राज्य सरकार ने प्रदेशव्यापी ’चिट्टा मुक्त हिमाचल’ अभियान आरम्भ किया है, ताकि युवाओं को नशे जैसी बुराई से दूर रखा जा सके।  इस अभियान के तहत प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर वाकथाॅन का आयोजन किया जा रहा है प्रदेश सरकार ने नशा माफिया की जड़ों तक पहुंचने और इसे पूरी तरह उखाड़ फेंकने के ध्येय के साथ नई दिशा दी है। राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई यह मुहिम अब राज्य स्तर से होते हुए पंचायतों, गांवों और घर-घर तक पहुंच रही है। यह अभियान केवल सरकारी नहीं, बल्कि लोगों की सहभागिता वाला सशक्त जन आन्दोलन बन चुका है। सरकार इस सजग सामाजिक आन्दोलन को प्रभावी बनाने के लिए कानूनी मोर्चे पर भी कठोर कदम उठा रही है। नशा विरोधी कानूनों को और अधिक कड़ा किया जा रहा है वहीं प्रदेश में चिट्टे के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति लागू है। प्रदेश सरकार ने नशा तस्करों के लिए मृत्युदंड, आजीवन कारावास, 10 लाख रुपये तक जुर्माना और नशा माफिया की संपत्ति जब्त करने जैसे कठोर प्रावधान किए हैं। सरकार प्रदेश में न केवल सख्त प्रवर्तन सुनिश्चित कर रही है बल्कि नशे से पीड़ित व्यक्तियों की काउंसलिंग, उपचार और पुनर्वास तंत्र को भी मजबूत कर रही है। निश्चित तौर पर नशा आज समाज में एक बड़ी चुनौती बन चुका है जिससे निपटने के लिए एक व्यापक जन जागरूकता की बेहद आवश्यकता है। परिक्रमा के लिए आकाशवाणी शिमला से मैं प्रभा शर्मा।

 

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खेल के मैदान में

 

आगामी टी-20 विश्वकप और न्यूज़ीलैंड टी-20 श्रृंखला के लिए 15 सदस्यीय भारतीय टीम की घोषणा कर दी गई है। टीम के कप्तान सूर्यकुमार यादव और उपकप्तान अक्षर पटेल होंगे। रिंकू सिंह और ईशान किशन की टीम में वापसी हुई है वहीं शुभमन गिल और जितेश शर्मा को टीम में जगह नहीं मिली है।

 

न्यूज़ीलैंड से टी-20 श्रृंखला 21 जनवरी से वहीं टी-20 विश्वकप का आयोजन 7 फरवरी से होगा।।

 

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In Badminton, Men’s Doubles pair of Satwiksairaj Rankireddy and Chirag Shetty will take on Liang Wei Keng and Wang Chang of China in the semifinals of season-ending BWF World Tour Finals in Hangzhou, China this evening.

 

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अब हम बात करेंगे उन महान व्‍यक्तियों की जिनकी आज है-पुण्‍यतिथि, जयंती या जन्‍मदिन।

 

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बाबा सोहन सिंह भकना (अंग्रेज़ी: Sohan Singh Bhakna, जन्म- जनवरी, 1870, अमृतसर; मृत्यु- 20 दिसम्बर, 1968)

 

हम याद कर रहे हैं, भारत की आज़ादी के लिए संघर्षरत क्रांतिकारियों में से एक बाबा सोहन सिंह भकना को, आज उनकी पुण्यतिथि है। बाबा सोहन का जन्म जनवरी, 1870 ई. में पंजाब के अमृतसर ज़िले के ‘खुतराई खुर्द’ नामक गाँव में एक संपन्न किसान परिवार में हुआ था। हालांकि, छोटी सी उम्र में ही उनके सर से पिता का साया उठ गया और मां ने ही उनका भरन पोषण किया। अपनी आजीविका की खोज में सोहन सिंह अमेरिका जा पहुंचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय आदि अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक बाबा सोहन सिंह के कानों तक भी पहुँच चुकी थी। सोहन सिंह 40 वर्ष की उम्र में सन 1907 में अमेरिका पहुँचे। वहाँ उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 200 पंजाब निवासी वहाँ पहले से ही काम कर रहे थे। किंतु इन लोगों को वेतन बहुत कम मिलता था और विदेशी उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। सोहन सिंह जी को यह समझते देर नहीं लगी कि उनका यह अपमान भारत में अंग्रेज़ों की ग़ुलामी के कारण हो रहा है। अतः उन्होंने देश की आज़ादी के लिए स्वयं के संगठन का निर्माण करना आरम्भ कर दिया। क्रांतिकारी लाला हरदयाल अमेरिका में ही थे। उन्होंने ‘पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन’ नामक एक संस्था बनाई। बाबा सोहन सिंह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने। सब भारतीय इस संस्था में सम्मिलित हो गए, जिसका नाम बाद में बदकर ‘ग़दर पार्टी’ रखा गया। सोहन सिंह भकना को इस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था। इसी संस्था के द्वारा ‘गदर’ नामक समाचार पत्र भी निकाला गया।

 

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Kanu Roy

 

Kanu Roy composed music for only 9-10 films in his career but all of them are remembered for their songs and compositions. He spent his life in financial crisis, never got married and stayed alone.

 

He came to Bombay to become a playback singer. He tried his luck but could not become so. He joined IPTA and started composing music as well. He tunes were very popular with the fellow members. He got a few chances to sing in the movies but all the songs were ensembles or chorus.

 

He in late 1960sm he came in contact with the director Basu Bhattacharya, who was then working with Bimal Roy as an assistant.

 

Basu’s next film Aavishkar, again saw Kanu Roy as the music composer. His song, ‘Hansne ki chah ne kitna mujhe rulaya hai..’ sung by Manna Dey is capable of bringing tears to one’s eyes.

 

This song is considered as one of the best renditions of Manna Dey. For the same film, Anubhav, Asha Bhosle sang a beautiful composition, ‘Naina hain pyase mere.’ which was beautifully imbibed in the film in the background. It not only gave a haunting feel but also sounded very melodious.

 

He got another chance to compose or the 1979 film, Shyamala. He used the 40 peice orchestra for the first time for the song “Balma mera Balma..’ sung by Mukesh and Dilraj Kaur. It was again a beautiful composition but Kanu failed to get any recognition.

 

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नलिनी जयवंत (अंग्रेज़ी: Nalini Jaywant; जन्म- 18 फ़रवरी, 1926, बम्बई, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 20 दिसम्बर, 2010, मुम्बई, भारत)

 

कुछ नाम हिंदी सिनेमा में ऐसे हैं, जिनकी चमक समय के साथ फीकी नहीं होती। 40 और 50 के दशक की मशहूर अभिनेत्री नलिनी जयवंत भी उन्हीं नामों में शामिल हैं, जिन्होंने आज के दिन इस दुनिया को अलविदा कहा था। एक ऐसा दौर था जब उनकी मुस्कान, अदाएं और सादगी ने लाखों दिलों को दीवाना बना दिया था। उस समय उनकी खूबसूरती की तुलना मधुबाला जैसी महान अभिनेत्री से होती थी। नलिनी ने बहुत कम उम्र में फिल्मों में कदम रखा।

 

नलिनी ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत वर्ष 1941 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘राधिका’ से की थी। महबूब खान की फिल्म ‘बहन’ से उन्होंने बतौर अभिनेत्री अपनी पहचान बनाई, हालांकि उस समय वह छोटी थीं, लेकिन कैमरे के सामने उनका आत्मविश्वास लाजवाब था। दर्शकों ने उनके अभिनय को देखकर मान लिया था कि नलिनी सिर्फ खूबसूरत ही नहीं, बल्कि बेहतरीन अदाकारा भी हैं। धीरे-धीरे उनका नाम इंडस्ट्री में फैलने लगा। फ़िल्म ‘काला पानी’ का यह गीत भला कौन भुला सकता है….जिस पर नलिनी ने अभिनय किया..

 

अभिनय के साथ-साथ नलिनी गायिकी में भी अच्छी थीं। फिल्म राधिका के दस में से सात गीतों में नलिनी जयवंत की आवाज़ थी। फिल्म बहन में वजाहत मिर्ज़ा का लिखा हुआ एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ।

 

अपने एक संस्मरण में नलिनी जयवंत ने कहा था कि- “मैं जब बमुश्किल छह-सात साल की थी, तभी ऑल इंडिया रेडियो पर नए-नए शुरू हुए बच्चों के प्रोग्राम में भाग लेने लगी थी। इसी कार्यक्रम में हुई संगीत प्रतियोगिता में मैंने गायन के लिए प्रथम पुरस्कार जीता था।

 

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Walden Robert Cassotto

 

Walden Robert Cassotto (May 14, 1936 – December 20, 1973), singer, songwriter, and actor who performed pop, swing, folk, rock and roll and country music.

 

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मुंगरा यामिनी कृष्णमूर्ति (अंग्रेज़ी: Mungara Yamini Krishnamurthy, जन्म- 20 दिसंबर, 1940)

 

आज प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना मुंगरा यामिनी कृष्णमूर्ति का जन्मदिन है। उन्होंने भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी में ख्याति प्राप्त की है। यामिनी कृष्णमूर्ति ने अपनी आत्मकथा “ए पैशन फ़ॉर डांस” एक पुस्तक जारी की थी। यामिनी कृष्णमूर्ति को तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम की ‘अस्थाना नर्तकी’ अर्थात ‘निवासी नर्तकी’ होने का सम्मान प्राप्त है। उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

 

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